असहाय न्यायालय

अशोक लव

कोरोना के कारण राजधानी में हाहाकार मचा हुआ था। अस्पतालों में बेड नहीं थे, ऑक्सीजन नहीं थी। लोग मर रहे थे। न्यायालय में बहस चल रही थी। दो न्यायाधीशों की बेंच वरिष्ठ अधिवक्ता रागिनी चैधरी की याचिका पर विचार कर रही थी। रागिनी चैधरी का मोबाइल बजा। मोबाइल बंद करके वह कहने लगी- ‘‘सर, इस बहस को यहीं रोक दें। मैं अपनी याचिका वापिस लेती हूँ। अब आप क्या, कोई भी कुछ नहीं कर सकता। मैं हार गई सर, मैं हार गई।’’ कहकर वह फूट-फूटकर रोने लगी। एक जूनियर एडवोकेट उसे संभालने लगे। दोनों न्यायधीश दंग रह गए। रागिनी चैधरी को आज तक किसी ने इस प्रकार भावुक होते नहीं देखा था। ‘‘रागिनी जी, क्या हुआ? बताइए तो सही !’’ न्यायमूर्ति भसीन ने पूछा। रागिनी चैधरी ने साहस जुटाया। वह रुँधे गले से कहने लगी- ’’सर, छोटे भाई का निधन हो गया है। उसे बेड नहीं मिल सका, ऑक्सीजन नहीं मिल सकी। उसने दम तोड़ दिया है। अभी-अभी भाभी का फ़ोन आया था। मैंने भाई को आश्वासन दिया था कि डाॅक्टर लाख मना कर दें, न्यायालय अभी जिंदा हैं। मैंने उसकी ओर से याचिका दी थी कि न्यायालय उसे बेड और ऑक्सीजन उपलब्ध करा देगा। सर, मैं हार गई ! मैं भाई को बचा नहीं सकी।’’ कहकर वह रोते-रोते कुर्सी पर बैठ गई। कमरे में सन्नाटा पसर गया। दोनों न्यायाधीशों की आँखें भर आईं। न्यायामूर्ति भसीन कहने लगे- ‘‘रागिनी जी, आप नहीं हारीं, हम हार गए हैं, देश हार गया है, व्यवस्था हार गई है!’’


अशोक लव
से-6, द्वारका
नई दिल्ली

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