‘तत्त्वचिन्तन’ का लोकार्पण एवं बृहद चर्चा

यह एक पुस्तक नहीं, एक शोध है। इस पुस्तक में पूरी शास्त्रीयता के साथ लेखक ने अपने विषयों को प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक के लेखों में विश्लेषण की गुंजाइश नहीं, केवल स्वीकृति है। इन लेखों को पाठ्यक्रमों में रखने से आज की चेतना के लिए बहुत बड़ा पथ-प्रदर्शन हो जायेगा। मुझे पुस्तक की तत्समता ने बहुत प्रभावित किया। इतिहास ने बहुत प्रभावित किया। इस पुस्तक का एक लेख – ‘गंगा-सागर मिलन’ पढ़कर उसकी काव्यात्मकता के कारन मुझे पंत याद आ गए। इस पुस्तक में रोचकता है। वह रोचकता कहने में तो हैं ही, शब्द-शक्ति से भी है।


उक्त बातें धर्माचार्य और ज्योतिष मार्कण्डेय शारदेय जी की पुस्तक ‘तत्त्वचिन्तन’ के लोकार्पण और परिचर्चा के कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शास्त्रोपासक आचार्य (डॉ) चंद्रभूषण मिश्र जी ने कही। पुस्तक का लोकार्पण कार्यक्रम ऑनलाइन आयोजित किया गया था। कार्यक्रम की अध्यक्षता आचार्य (डॉ.) चन्द्रभूषण मिश्र जी ने की जबकि मुख्य अतिथि पवन सेठी जी थे। पवन सेठी जी पिछले 35 वर्षों से मुंबई में विज्ञापन, फ़िल्मस और टेलिविज़न के लेखन से सम्बद्ध है।
पुस्तक ‘तत्त्वचिन्तन’ के लोकार्पण और परिचर्चा के कार्यक्रम का प्रारम्भ सर्व भाषा ट्रस्ट के केशव मोहन पाण्डेय द्वारा आगंतुकों का शाब्दिक स्वागत कर के किया गया, तदुपरांत पुस्तक के लेखक श्रीयुत मार्कण्डेय शारदेय ने पुस्तक की रचना-प्रक्रिया पर बोलते हुए कहा कि हमारे पूर्वजों ने जीवन के हर मोड़ को देखा-समझा है। उन्होंने भोग के रस को भी जाना और योग के रहस्य को भी। भोग-योग का एकीकरण ही शिव-शक्ति का संयोग है। ऐसा होने पर जीवनकाल में भी विदेहत्व सम्भव है और जीवन के पार भी। इसीलिए हमारे पुराण-पुरुष सदा सजग रहे और हमें भी करते रहे। इसी संस्कृति को आधार बनाकर इस पुस्तक में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।


आचार्य सतीश शास्त्री जी ने लेखक में विराट व्यक्तित्व और ‘तत्त्वचिन्तन’ जैसी श्रेष्ठ पुस्तक की रचना करने के लिए आभार व्यक्त किया। तकनीकी कारणों से आचार्य चन्द्रशेखर ठाकुर जी नहीं जुड़ पाए, लेकिन उनका सन्देश पढ़ कर सुनाया गया। पाटलिपुत्र विशवविद्यालय के अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ. ब्रजेशपति त्रिपाठी जी लेखक को शुभकामनाएँ प्रेषित करते हुए कहा कि वर्तमान भौतिकवादी युग में नैतिक और आध्यात्मिक विषयों पर लिखना बहुत ही वंदनीय और सराहनीय है। आर्थोपेडिक सर्जन और गीता सुबोधिनी के लेखक डॉ. मिथिलेश कुमार जी ने कहा कि इस पुस्तक का नाम देख-सुनकर मन में ललक जगी कि जिन आध्यात्मिक तत्त्वों की बात कही जाती है, जिसे मैं गीता में खोजता हूँ, वह तत्त्व यहाँ है कि नहीं। जब मैंने इसे पढ़ा तो पाया कि वहीं तत्त्व यहाँ सर्वत्र विद्यमान है।
वक्ताओं में आगे बिहार सरकार के वरिष्ठ पदाधिकारी और साहित्यकार डॉ सुनील कुमार पाठक जी ने पुस्तक पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कहा कि तत्त्वचिन्तन पुस्तक मेरी दृष्टि में महायाज्ञिक प्रतिभा की एक विमल कृति है। उन्होंने आगे कहा कि जहाँ पर लोक और शास्त्र, दोनों का मणि-कंचन संयोग हो वहाँ पर ज्ञानशिखा और तीव्र रूप में प्रकट होती है। यह पुस्तक उसी आदर्श ज्ञानशिखा का उदाहरण है।
पाटलिपुत्र विशवविद्यालय के मनोवेत्ता प्रो. जयमंगल देव जी पुस्तक पर अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि – तत्त्वचिन्तन के अधिकांश लेखों को पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ता रहा हूँ लेकिन समाचार पत्रों में लेख को पढ़ना और पुस्तक के रूप में पढ़ना, दोनों दो अनुभूतियाँ होती हैं। इसके लिए आचार्यवर तथ सर्व भाषा ट्रस्ट, दोनों ही बधाई के पात्र हैं। मेरी दृष्टि में पूरी पुस्तक की जो केंद्रीय प्रवृत्ति है वह है लोकमानस में जीवन को कल्याणकारी बनाने वाले तत्त्वों के सुदृढ़ीकरण का प्रयास।


धर्मायण के सम्पादक श्री भवनाथ झा ने कहा कि सबसे मैं मार्कण्डेय शारदेय जी से मिला हूँ, मैं हमेशा देखता रहा हूँ कि इनका विराट अध्ययन है। इन्होंने संस्कृत माध्यम से पौराणिक, धर्मशास्त्रीय, ज्योतिष ग्रंथों का सर्वांग अध्ययन किया है जो इस तत्त्वचिंतन में दृष्टिगत हो रहा है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विज्ञापन, फ़िल्मस और टेलिविज़न के लेखन से सम्बद्ध तथा कृष्णोत्सव और कृष्ण प्रज्ञा पत्रिकाओं के सम्पादक पवन सेठी ने पुस्तक के तत्त्वों पर विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि ‘तत्त्वचिन्तन’ में केवल दर्शन ही नहीं, धर्म भी है और विज्ञान भी है। इसमें ऊर्जा भी है, क्षमता भी है। इसमें समय, देश-काल और परिस्थिति के अनुसार प्रभावशाली लेख हैं।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में आचार्य (डॉ) चंद्रभूषण मिश्र जी ने पुस्तक की शिल्प, सृजन, प्रस्तुति और तत्त्व पर विस्तृत बात रखते हुए लेखक और प्रकाशन को अपना आशीर्वाद दिया। अंत में आगंतुकों के प्रति मार्कण्डेय शारदेय जी ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन केशव मोहन पाण्डेय ने किया।

Related posts

Leave a Comment