डॉ. सुमन सिंह की चार कविताएँ

  1. वे सचमुच बदल गए गले में फ़ांस की तरह करकती रही पत्नी पीछा छुड़ा भटकते रहे शहर दर शहर इतिहास के पन्ने पलटते कहते स्त्रियाँ सदैव से रही हैं विवाद का दुखद कारण मोहिनी, मायाविनी, विनाशिनी, त्याज्य जिन्होंने त्यागा महात्मा बन गए कनखियों से देखते उन झुकी डब-डब आँखों को थाहते उनकी पीड़ा की गहराई, प्रसन्न हो जाते कभी दाल में ज़्यादा नमक और कभी सब्ज़ी का फीकापन पागल बना देता उन्हें थाली फेंक फुफकारते आँकते-काँपते शरीर का थरथर डर आह्लादित हो जाते कभी बच्चों के ख़राब अंकपत्र…

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