हरिराम द्विवेदी भोजपुरी कविता का एक सुपरिचित नाम है। 12 मार्च 1936 को जन्मे 85 पार के द्विवेदी जी भोजपुरी साहित्य-जगत में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। तीन दशकों तक वे आकाशवाणी की प्रसारण-सेवा से जुड़े रहे। उनकी लोकप्रियता का प्रमाण कुछ इस रूप में है कि लोग उनको ‘हरि भैया’ कहते हैं। सहज स्नेहिल व्यक्तित्व के धनी हरि भैया अपने गीतों से जनमन को मोह लेते हैं। कहना चाहूँगा कि उनके गीतों में यह यह ‘मोह’ कई बार आया है। बल्कि यह भी कहना चाहूँगा कि ‘मोह’ शीर्षक…
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बुजुर्गों का ख़्याल रखना हमारा कर्तव्य
किसी ने सच ही कहा है कि हम सब कुछ बदल सकते है, लेकिन अपने पूर्वज नहीं। उनके बिना न ही हमारा वर्तमान सुरक्षित है और ना ही भविष्य की नींव रखी जा सकती है। हमारे पूर्वज ही इतिहास से भविष्य के बीच की कड़ी होते है। इन सबके बावजूद अफ़सोस की आज हम अपने पूर्वजों का सम्मान तक नहीं कर पा रहे है और न ही उनकी दी हुई सीख पर अमल कर पा रहे हैं। मातृ देवों भवः, पितृ देवों भवः से अपने जीवन का आरम्भ करने वाला…
Read Moreकहाँ खो गया नवगीत आंदोलन
एक समय हिंदी कविता, हिंदी गीतों में अपना राज करने वाला नवगीत आज अपनी पहचान खोता जा रहा है। नवगीत कुछ छापने के लिए ना तो कोई प्रकाशन स्थल है ना कोई काव्य मंच और ना कोई शंभूनाथ सिंह राजेंद्र प्रसाद सिंह अथवा ठाकुर प्रसाद सिंह जैसा नवगीत का ध्वजा वाहक। जो नव गीत कारों को इकट्ठा करे और नवगीत सृजन को आगे बढ़ाएं। नवगीत कारों को मंच दे। हिंदी में आज कोई ऐसा प्रकाशक नहीं है जो नवगीत संग्रह छापे। आज स्थिति ऐसी हो गई है कि नवगीत लिखे…
Read Moreमहिलाओं के साथ दोयम रवैये का अंत आख़िर कब होगा?
धर्म कोई भी हो, चाहे वह हिंदू, मुस्लिम, सिख और इसाई। सभी धर्म में महिलाओं के इज्जत और मान सम्मान की बात कही गई है। हमें हमारा समाज हमेशा यही बताता आया है कि महिलाओं की इज्जत करनी चाहिए। खासकर हिंदू धर्म में तो महिलाओं को देवताओं के समान माना गया है। लेकिन अगर इसी समाज में कोई अपनी बहन बेटी की ही इज्जत ना कर पाए तो वह कहीं न कहीं दुर्भाग्य की बात है। आएं दिनों महिलाओं पर होते अत्याचार मीडिया जगत की सुर्खियां बनते है। बावजूद इसके…
Read Moreभोजपुरी के मांगलिक गीतन में प्रकृति
लोक-जीवन में आदमी के सगरो क्रिया-कलाप धार्मिकता से जुड़ल मिलेला। आदमी एह के कारन कुछू बुझेऽ। चाहे अपना पुरखा-पुरनिया के अशिक्षा आ चाहे आदमी के साथे प्रकृति के चमत्कारपूर्ण व्यवहार। भारतीय दर्शन के मानल जाव तऽ आदमी के जीवन में सोलह संस्कारन के बादो अनगिनत व्रत-त्योहार रोजो मनावल जाला। लोक-जीवन के ईऽ सगरो अनुष्ठान, संस्कार, व्रत, पूजा-पाठ, मंगल कामना से प्रेरित होला। ई सगरो मांगलिक काज अपना चुम्बकीय आकर्षण से नीरसो मन के अपना ओर खींच लेला। एह अवसर पर औरत लोग अपना कोकिल सुर-लहरी से अंतर मन के उछाह…
Read Moreभारतीय सभ्यता और विकास
भारतीय जीवन में सभ्यता और नैतिकता हमारे देश की संस्कृति का प्रचार संभवत देश के कोने कोने में है कई विदेशी हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति से इतना प्रभावित हैं कि वहां के विद्वान हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति पर रिसर्च करके पीएचडी की उपाधि ले रहे हैं लेकिन हमारे देश की जनता इसका महत्व नहीं जानती उन्हें अपनी विरासत से मिली सभ्यता से कोई लेना-देना ही नहीं है क्योंकि वे इसे घटिया और अपनी बेइज्जती करने वाले समझते हैं क्योंकि वह आधुनिक और आधुनिकता का सीधा मतलब…
Read Moreनारीवाद का प्रतिरोध नारीवाद
नारीवाद का प्रतिरोध नारीवाद या नारी अधिकार वाद के स्वाधीन राजनीतिक सिद्धांत के रूप में मान्यता देना कठिन है। अधिक से अधिक यह एक विचारात्मक आंदोलन है जिसके साथ जुड़े हुए विचारों को स्वतंत्रता, समानता और न्याय के सिद्धांत के रूप में स्वीकारा जा सकता है। इस सामान्य सिद्धांत के संदर्भ में यह पुरुष के मुकाबले नारी की स्थिति, भूमिका और अधिकारों से गहरा सरोकार रखता है। नारी पराधीनता और नारी के प्रति होने वाले अन्याय पर ध्यान केंद्रित करता है और इसके प्रति कारों के उपायों पर ध्यान केंद्रित …
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