पत्र-प्रतिक्रिया

नमस्कार मित्रों,

सर्वभाषा (अप्रैल-जून 2021)
नूतन चिंतन के साथ प्रगति की दिशा में अग्रसर करना अत्यंत रुचिकर होता है। साहित्य शब्द आता है भाषा से । हमारा देश भारत विविध भाषाओं का समन्वय है एवं भिन्न भिन्न संस्कृतियों की धरा भी । साहित्य इन भाषाओं को… संस्कृतियों को अपना देहावरण बनाये उल्लसित हो उठता है देश के भिन्न भिन्न प्रांतो में । यदि इन्हीं भाषाओं को हमें एक ही साहित्यिक पटल पर पढ़ने का अवसर मिल जाए तो अति प्रसन्नता मिलती है।
पत्रिका ‘सर्वभाषा’ चमत्कृत करती एक ऐसी पत्रिका है जिसमें अंग्रेजी सहित देश की उनचास भाषाओं को स्थान दिया है अपने अति कोमल पृष्ठों पर । यह पत्रिका कविता, कहानी, संस्मरण, यात्रा वृतांत, पुस्तक समीक्षा,आलेख इत्यादि कई विषयों पर लिखने का आधार देती है रचनाकारों को । पत्रिका के आवरण पृष्ठ में विविधता में एकता का स्वर निहित है । उत्तम मुद्रण की यह पत्रिका एक निदर्शन है ऐकिक विचार का ।
इसका संपादक माननीय केशव मोहन पांडे जी, जो की स्वयं एक विद्वान साहित्यकार हैं,ने अपनी उत्कृष्ट विचारधारा को एक ऐसा प्रवाह दिया है जिसमें केवल हिंदी साहित्य ही नहीं… अन्य भाषाओं का साहित्य भी उद्भासित होता है।
भाषा, साहित्य, संस्कृति एवं कला को समर्पित सर्व भाषा ट्रस्ट की अप्रैल -जून मास की प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका जब मुझे प्राप्त हुई तो मैं यह देख कर खुश हो गई कि इसमें मेरी मातृभाषा ओड़िआ भी सम्मिलित की गई है । इसका संपादकीय पृष्ठ पढ़ते ही एक सकारात्मक विचार आता है मन एवं मस्तिष्क में जो संपूर्ण पत्रिका को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। आदरणीय शिवचरण चौहान जी का नवगीत पर आलेख हिंदी साहित्य की लुप्त होती परंपरा को पुनः उद्घाटित करने की प्रेरणा देता है, आद.डॉ. वेदप्रकाश जी के यात्रा संस्मरण में लिखा उनका एक विचार अत्यंत मर्मस्पर्शी है.. कि’ मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए कैसा नियम बना रखा है कि मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित देव प्रतिमाओं के दर्शन तथा प्रसाद का वितरण पैसे एवं टिकट के अनुसार निर्धारित किया जाता है ? ‘ संपूर्ण यात्रा संस्मरण ने प्रश्न उठाने के साथ ही हृदय को स्पर्श किया है । संस्कृत भाषा को जीवित रखने का भागीरथ उपक्रम करते युवा छात्रों को नमन… आद. योगेंद्र भारद्वाज जी ने संस्कृत में लिखा अति सुंदर आलेख प्रदान किया है इस पत्रिका को । आदरणीय अशोक लव जी की सामायिक लघुकथाएँ जितनी रोचक हैं उतनी हृदय को द्रवीभूत करती डॉ. सुदीप्ता घोष की अंग्रेजी में लिखी लघुकथा ‘सोनार बांग्ला ‘ … जिसकी शेष पंक्ति में संदेश मिलता है कि एक ही ईश्वर, एक ही याचना किंतु दो भिन्न भाषाओं में प्रार्थना ।
अति मनमुग्धकारी संकलन है यह पत्रिका । “सदानीरा है प्यार” काव्यसंकलन पर आदरणीय शहंशाह आलम जी की गयी उत्कृष्ट समीक्षा एवं स्त्री कांति का उद्घोष करती पुस्तक “स्त्री का पुरुषार्थ” जो कि आदरणीया सांत्वना श्रीकांत जी के द्वारा लिखी गयी है,पर आदरणीया लिली मित्रा जी का गहनतम विश्लेषण दोनों ही अपने अपने विचारों को चरितार्थ करती एक नदी की दो धाराएँ बन बह गयी है।
नव प्रतिभाओं की संवेदनशील भावनाओं को स्थान दे कर देश की कला एवं संस्कृति का उत्थान करती इस पत्रिका को एवं संपादक मोहदय जी को हृदयतल से धन्यवाद करती हूँ । आपकी शुभेच्छा सदैव पूर्ण हो ।
इति शुभम्
अनिमा दास
कटक, ओड़िशा

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