‘ग्रामदेवता’ एक व्यंग्यात्मक उपन्यास

नवम्बर, 2020 में ऐक्सिस प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित ‘Village-gods ‘ के रूप में अंगरेज़ी में अनुवाद करते समय कथाकार प्रोफ़ेसर रामदेव शुक्ल के भोजपुरी उपन्यास ‘ग्रामदेवता ‘ की पंक्तियों से गुजरते हुए मैंने पहली बार भोजपुरी भाषा की सिहरन, छुवन, कचोट से एकाकार होते हुए एक नई साहित्यिक अनुभूति प्राप्त की। यद्यपि “ग्रामदेवता ” पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्राम्यांचल को आधार बनाकर लिखा गया है लेकिन यह उपन्यास भारतवर्ष के सभी गाँवों के परिदृश्य को जीवन्त शैली में मूर्त कर देता है।

उपन्यास का शीर्षक ‘ग्रामदेवता ‘ व्यंग्यात्मक है। इसमें ब्राह्मणों का धार्मिक पाखण्ड, दलित जातियों की पारस्परिक कटुता, दलित स्त्रियों का उच्च वर्ग द्वारा शारीरिक शोषण, जनेऊधारी पंडितों द्वारा दिन में अस्पृश्य मानी जानेवाली हरिजन व मुस्लिम स्त्रियों के साथ रात के अंधेरे में यौनाचार, गाँव के विकास के लिए अवमुक्त सरकारी धन की बन्दरबाँट, ससुर-बहू के अनैतिक शारीरिक संबंध, शराबियों की धमा-चौकड़ी, कचहरी की रिश्वतखोरी, सूदखोरी, झाड़फूँक का अंधविश्वास, राजनीतिक दल द्वारा टिकट की बिक्री, चिकित्सकों द्वारा गरीब रोगियों से धन उगाही जैसे अनेक प्रसंग पाठक को कभी हँसाते हैं , कभी रुलाते हैं तो कभी विचार की भावभूमि पर गंभीर चिंतन के लिए खड़ा कर देते हैं। सोनमती के बीमार पति को अपनी किडनी का निःस्वार्थ भाव से दान करनेवाले जुम्मन चाचा हमें दूसरे के दुःख में शामिल होने की सद्प्रेरणा देते हैं।

पूरे उपन्यास में रूपक, उपमा, व्यंग्य, विरोधाभास तथा फ्लैश बैक का कुशलतापूर्वक प्रयोग किया गया है जिससे उपन्यास की थीम को एक विस्तृत कैनवस मिल जाता है। लोकोक्तियों का प्रयोग पठनीयता में एक नया रंग भर देता है। आंगिक चेष्टाओं का भाषिक प्रयोग कथा-रस में प्राण डाल देता है।उपन्यास के पात्रों के नाम उनके स्वभाव के अनुरूप रखे गये हैं जो पठनीयता को रुचिकर बनाने के साथ-साथ अर्थविशेष भी सम्प्रेषित करते हैं : सतुआ काका, गोजर चौधरी, गिरगिट, बिरजू पंडित, औतार बाबा, फुन्नीलाल, दुबरी साहू, रमपत बाबा, बुलेटवा, लालमन पंडित, खुइलन काकी आदि।

इस उपन्यास में भोजपुरी भाषा व समाज की विविध छवियाँ देखने को मिलती हैं जो पाठक को अपने स्नेहिल आलिंगन में बाँध लेती हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि यह उपन्यास पाठकों को साहित्यिक रस में सराबोर करेगा।

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डाॅ. धर्मपाल सिंह

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