कहाँ खो गया नवगीत आंदोलन

शिवचरण चौहान

एक समय हिंदी कविता, हिंदी गीतों में अपना राज करने वाला नवगीत आज अपनी पहचान खोता जा रहा है। नवगीत कुछ छापने के लिए ना तो कोई प्रकाशन स्थल है ना कोई काव्य मंच और ना कोई शंभूनाथ सिंह राजेंद्र प्रसाद सिंह अथवा ठाकुर प्रसाद सिंह जैसा नवगीत का ध्वजा वाहक। जो नव गीत कारों को इकट्ठा करे और नवगीत सृजन को आगे बढ़ाएं। नवगीत कारों को मंच दे। हिंदी में आज कोई ऐसा प्रकाशक नहीं है जो नवगीत संग्रह छापे। आज स्थिति ऐसी हो गई है कि नवगीत लिखे तो जा रहे हैं पर उनके प्रस्तुत करने का कोई मंच नहीं है।
बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह ने नवगीत की विधिवत शुरुआत की थी उन्होंने अपने हिसाब से नवगीत की परिभाषा भी गढ़ी थी। उनका पहला नवगीत संग्रह गीतांगिनी सन 1958 में आया था। यद्यपि उनके पहले भी सूरदास तुलसीदास कबीर और निराला जाने अनजाने में नवगीत की रचना कर चुके थे। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की अनेक गीत नवगीत ही हैं।
काशी निवासी डॉक्टर शंभू नाथ सिंह ने विधिवत नवगीत आंदोलन चलाया था। उनके नवगीत उस समय काव्य मंचों पर धूम मचाए रहते थे। इतने सुंदर ढंग से नवगीत लिखते थे उतने ही सुंदर ढंग से नव गीत सुना ते भी थे। डॉक्टर शंभू नाथ सिंह ने भारत भर के नवगीत कारों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया था। उन्होंने नवगीत दशक नाम से कई संग्रह निकाले और नवगीत कारों को स्थापित किया था।
ठाकुर प्रसाद सिंह प्रथम श्रेणी के अफसर थे और उत्तर प्रदेश के सूचना निदेशक भी। उनके संग्रह वंशी और माद ल में बहुत सुंदर नवगीत संग्रहीत हैं। ठाकुर प्रसाद सिंह ने भी काव्य मंचों से नवगीत की रसधार बहाई थी।
इन नव गीत कारों का मानना था कि आज समय बदल गया है। गीत को महज छायावाद प्रेम वाद से निकालकर जन जन के बीच ले जाना है। नवगीत में भले ही मात्राओं का तुकांत ना मिले परंतु गेयता होनी चाहिए। नया कथ्य नया विषय नए प्रतिमान नए अलंकार होने चाहिए और आमजन की पीड़ा की अभिव्यक्ति नवगीत में होनी चाहिए। जो गीत शोषित पीड़ित आमजन की समस्या ना समझ सके उनका दर्द अपने दिल में समाहित ना कर सके वह गीत किस काम का। सामयिक प्रतिमान, उपमान, उप मेय के साथआमजन का दर्द, सामाजिक और राजनीतिक परिपेक्ष्य का वर्णन चित्रण गायन नवगीत में होना चाहिए।
इस संदर्भ में नईम के नवगीत टटके टटके दिल में स्थान बना लेते हैं और आज की व्यवस्था पर प्रहार करते हैं। मध्य प्रदेश के शाजापुर के डॉक्टर इशाक अश्क के नव गीत देर तक याद रहते थे। उनकी पत्रिका समांतर लगातार नवगीत कारों को प्रोत्साहित करती थी। मुंबई के हस्तीमल हस्ती गजलों के और नव गीतों के लिए समर्पित होकर काव्या नाम की एक मासिक पत्रिका निकालते हैं। डॉक्टर सूर्यभान गुप्त, जहीर कुरैशी, शांति सुमन, विजय किशोर मानव, डॉक्टर माहेश्वर तिवारी, भारत भूषण, किशन सरोज सूर्य कुमार पांडे य के नवगीत एक समय धूम मचाए रहते थे। हिंदी की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं से लेकर रेडियो दूरदर्शन कवि सम्मेलनों में इनके नवगीत सुने और सराहे जाते थे।
योगेंद्र दत्त शर्मा, प्रसिद्ध नव गीतकार कन्हैयालाल मत्त के सुपुत्र हैं। प्रकाशन विभाग की पत्रिका आजकल का संपादन करते हुए उन्होंने हिंदी नवगीत के लिए बहुत काम किया है। आजकल के कई विशेषांक इसके उदाहरण है। योगेंद्र दत्त शर्मा स्वयं एक कुशल नव गीतकार,कवि है।
कानपुर में जन्मे पढ़े लिखे और अब दिल्ली में बस गए नव गीतकार विजय किशोर मानव ने दैनिक जागरण, दैनिक हिंदुस्तान के रविवारी विशेषांक, परिशिष्ट में अनेक नवगीत कारों को छाप प्रकाशित किया है। नवगीत कारों की एक पीढ़ी दैनिक जागरण और हिंदुस्तान के साप्ताहिक परिशिष्टों से तैयार हुई है। विजय किशोर मानव ने कादंबिनी का संपादन करते हुए अनेक उभरते हुए नवगीत कारों को प्रतिस्थापित किया है।
रामकुमार कृषक ने अपनी पत्रिका का नव गीतकार नईम पर एक विशेषांक छाप कर उल्लेखनीय काम किया है।
गोरखपुर निवासी देवेंद्र कुमार बंगाली नवगीत के अद्भुत चितेरे थे। एक पेड़ चांदनी लगाया है आंगने। फूले तो आ जाना एक फूल मांगने।। उनका बहुत चिर परिचित नवगीत है।
बुद्धिनाथ मिश्र ने जितने सुंदर नवगीत लिखे हैं उतने ही सुंदर ढंग से वह मधुर कंठ से नव गीत सुनाते हैं।
साहिबाबाद गाजियाबाद निवासी देवेंद्र शर्मा इन्द्र नव गीतों के सम्राट थे। नव गीतकार वीरेंद्र मिश्र उनका बहुत सम्मान करते थे। वीरेंद्र मिश्र के कई नवगीत संग्रहों का संपादन देवेंद्र शर्मा इंद्र ने किया था। मुद्दा है आज की बहस में। चिड़िया क्यों कैद है कफस में।। उनका चर्चित नवगीत है। नई दिल्ली के राजेंद्र गौतम के नवगीत भी बहुत श्रेष्ठ होते हैं। कानपुर निवासी और दिल्ली में जा बसे राधेश्याम बंधु एक लंबे समय से नवगीत लिख रहे हैं। वीडियो टीवी और पत्र-पत्रिकाओं में उनके नवगीत छपते रहे हैं। उनके कई संग्रह भी हैं। गीतों के राजकुमार गोपाल दास नीरज जी ने अनेक उल्लेखनीय नवगीत लिखे हैं। उनके कई नवगीत फिल्मों में जाकर और अधिक लोकप्रिय हुए हैं।
इलाहाबाद निवासी उमाकांत मालवीय अपने नवगीतों के लिए मशहूर थे। उनके अनेक नवगीत आज भी उनके श्रोताओं को कंठस्थ हैं। उनके पुत्र यश मालवीय भी नव गीतकार हैं। और निरंतर सृजन रत हैं।
रायबरेली के नवगीत कार गुलाब सिंह ने नए पुराने नाम से एक पत्रिका निकाली थी जिसमें देशभर के नव गीत कारों के नवगीत छपते थे और समीक्षात्मक आलेख भी। नवगीत के बारे में अनेक उल्लेखनीय आलेख नए पुराने पत्रिका में छपे हैं जो ऐतिहासिक है। बालकृष्ण मिश्र जय चक्रवर्ती, कानपुर के विनोद श्रीवास्तव चर्चित नव गीतकार हैं।
कानपुर के अवध बिहारी लाल श्रीवास्तव लाल साहब और साहित्य भूषण वीरेंद्र आस्तिक देश के प्रतिष्ठित नवगीतकार हैं। लाल साहब की हल्दी के छापे नव गीतों की कृति है। वीरेंद्र आस्तिक के कई नवगीत संग्रह आ चुके हैं। आनंद तेरी हार है उनका बहुत चर्चित नवगीत है जो बहुत लोगों को कंठस्थ है। डॉक्टर रामस्वरूप सिंदूर, हरिलाल मिलन ब्रजनाथ श्रीवास्तव, रामस्वरूप सिंदूर, कन्हैया लाल बाजपेई के नवगीत बहुत चर्चित हुए हैं। कन्हैया लाल बाजपेई का एक संकलन भी लोकप्रिय हुआ है। सुप्रसिद्ध संपादक नव गीतकार कन्हैयालाल नंदन तो कन्हैया लाल बाजपेई का एक नव गीत _ सोने के हिरन नहीं होते_ अक्सर सुनाया करते थे। कन्हैयालाल नंदन ने धर्म युग, सारिका नवभारत टाइम्स और संडे मेल में अनेक नवगीत कारों के नवगीत छापे हैं। गगनांचल के संपादक रहते हुए कन्हैयालाल नंदन ने अनेक नवगीत कारों को प्रोत्साहित किया था। सहारनपुर के कृष्ण शलभ के नवगीत अक्सर पत्र-पत्रिकाओं में छपते थे और उनका एक नवगीत संग्रह भी है। लखनऊ के देवल आशीष का असमय जाना सबको रुला गया था।
श्री राम शलभ सिंह से लेकर अवनीश सिंह चौहान, अवनीश त्रिपाठी, विनय विक्रम सिंह अनेक नव गीतकार बहुत अच्छे हैं समय अनुकूल नवगीत सृजित कर रहे हैं।
आज नवगीत कारों के सामने सबसे बड़ी समस्या है कि उनके लिए कोई प्रकाशन मंच काव्य मंच नहीं है।जहां वह अपनी प्रस्तु ति कर सकें। आकाशवाणी और दूरदर्शन की हालत इन दिनों ठीक नहीं है। बजट के अभाव में अच्छे कार्यक्रम नहीं बन पा रहे हैं। कोरोना काल के आर्थिक संकट के चलते हिंदी की अनेक पत्र पत्रिकाएं बंद हो गई हैं। दैनिक समाचार पत्रों ने अपने साहित्यिक पृष्ठ या तो कम कर दिए हैं या बंद कर दिए हैं। आज नवगीत कारों को मंच देने के लिए कोई सक्षम नव गीतकार नहीं है। कुछ साल पहले लखनऊ में नवगीत पर दो या 3 सेमिनार हुए थे पर अब वह भी बंद हैं।

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शिवचरण चौहान

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