ऐ मेरी दुखमयी रातें

ऐ मेरी दुखमयी रातें
क्यों बिलखकर रो न लेती ?
केतन यादव 
हैं  उमड़ते  मेघ  तेरे  इस  हृदय  स्नेहिल  पटल  पर
टूटते मिटते गरजते हैं बिखरते इस अचल पर
क्यों न तुम खुद के बरसकर
इस नयन में हो न लेती
ऐ मेरी दुखमयी रातें
क्यों बिलखकर रो न लेती ?
क्षण भर उजाला बस लिए आकाश में बिजली चमकती
वेदना के फिर अँधेरों में मेरी रातें सिमटती
सिसकियाँ भर कर लिपटकर
गोद में क्यों रो न लेती
ऐ मेरी दुखमयी रातें
क्यों बिलखकर रो न लेती ?
खिड़कियों से झाँक आ तू रात में यह कौन जागा
यूँ विरह में रो रहा वह कौन है इतना अभागा
उसके चिर संतप्त मन के –
ताप छू कर धो न लेती
ऐ मेरी दुखमयी रातें
क्यों बिलखकर रो न लेती ?
     **
  – केतन यादव 

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